सैर चौथे दरवेश की
इस लियाक़त से
गुफ्तुगू की कि मैं उसकी सूरत और सीरत पर महू हो गया। मुबारक मेरी खातिरदारी बहुत सी
करने लगा ,लेकिन दिल की हालत की उसको क्या खबर थी ? लाचार होकर मैंने पुकारा की अये खुदा के
बंदो और उस मकान के रहने वालो ! मैं गरीब मुसाफिर
हु , अगर अपने पास मुझे बुलाओ और रहने को जगह दो ,तो बड़ी बात है .उस अंधे ने नज़दीक बुलाया और आवाज़ पहचान कर गले
लगाया। और जहा वह गुलबदन बैठी थी ,उस मकान में
ले गया। वह एक कोने में छुप गयी। उस बूढ़े ने मुझसे पूछा की अपना माजरा कह ,की क्यू घर बार छोड़ कर
अकेला पड़ा फिरता है और और तुझे किसकी तलाश है ? मैंने मलिक सादिक़ का नाम न लिया और वहा का कुछ ज़िक्र मज़कूर (ज़िक्र) न किया। इस तौर से कहा की यह बेकस ,शहज़ादा चीन वमाँ
चीन का है। चुनांचा मेरे वली नेमत हनोज़ बादशाह
है ,एक सौदागर से लाखो रूपये देकर यह तस्वीर मोल ली थी। उसके देखने
से सब होश आराम जाता रहा ,और फ़क़ीर का भेस कर कर तमाम दुनिया छान मारी। अब यहाँ
मेरा मतलब मिला है ,सो तुम्हारा इख़्तियार है।
यह सुन कर अंधे ने एक आह मारी और बोला : ए अज़ीज़ ! मेरी लड़की बड़ी मुसीबत में गिरफ्तार है। किसी बशर की मजाल नहीं की उससे निकाह करे और फल पाए। मैंने कहा : उमीदवार हु की तफ्सील बयान करो। तब इस अजमी ने अपना माजरा इस तौर से ज़ाहिर किया की सुन ए बादशाह ज़ादे ! मैं रईस और अकाबीर (बड़ा) इस कम्बख्त शहर का हु। मेरे बुज़ुर्ग नाम आवर और आली खानदान थे ,हक़ तआला ने यह बेटी मुझे इनायत की। जब बालिग हुई तो उसकी ख़ूबसूरती और नज़ाकत और सलीक़े का शोर हुआ। और सारे मुल्क में मशहूर हुआ की फलाने के घर में ऐसी लड़की है की उसके हुस्न के मुक़ाबिल हूर ,परी शर्मिंदा है ,इंसान का तो क्या मुंह है की बराबरी करे ? यह तारीफ इस शहर के शहज़ादे से सुनी। गायबाना बगैर देखे भाले आशिक़ हुआ ,खाना पीना छोड़ दिया।
आखिर बादशाह को यह बात मालूम हुई। मुझे रात को अकेले में बुलाया ,और यह मज़कूर (ज़िक्र) दरमियान में लाया और मुझे बातो में फुसलाया यहाँ तक की निस्बत नाता करने में राज़ी किया। मैं भी समझा की जब बेटी घर में पैदा हुई ,तो किसी न किसी से बियाही चाहिए। बस इससे क्या बेहतर है की बादशाह ज़ादे से मंसूब (जोड़) कर दू ? इसमें बादशाह भी मन्नत दार होता है। मैं क़ुबूल करके रुखसत हुआ। उसी दिन से दोनों तरफ शादी की तैयारी होने लगी .एक रोज़ अच्छी घड़ी में क़ाज़ी,मुफ़्ती,आलिम,फ़ाज़िल ,अकाबिर ,सब जमा हुए ,निकाह बाँधा गया और महर तये हुआ। दुल्हन को बड़ी धूम धाम से ले गए। सब रस्म व रसूमात करके फारिग हुए नोशा (नौजवन) रात को जब क़स्द जिमअ का किया ,उस मकान में शोर गुल ऐसा हुआ की जो बाहर चौकी में थे ,हैरान हुए। दरवाज़ा कोठरी कर चाहा देखे की यह क्या आफत है ,अंदर से ऐसा बंद था की किवाड़ खोल न सके। एक दम में वह रोने की आवाज़ भी कम हुई। पट की चोल उखाड़ कर देखा तो दूल्हा सर कटा हुआ पड़ा तड़पता है ,और दुल्हन के मुंह से कफ चला जाता है ,और उसी मिटटी में लुथड़ी हुई बे हवास पड़ी लोटती है।
यह क़यामत देख कर सबके होश जाते रहे। ऐसी ख़ुशी में यह ग़म ज़ाहिर हुए। बादशाह को खबर पहुंची ,सर पीटता हुआ दौड़ा। तमाम अरकान सल्तनत के जमा हुए ,पर किसी की अक़्ल काम न करती की उस अहवाल को दरयाफ्त करे। निहायत को बादशाह ने उस क़लक़ की हालत में हुक्म किया की इस कम्बख्त भोड पैरी दुल्हन का सर भी काट डालो। यह बात बादशाह की ज़बान से जैसे निकली ,फिर वैसा ही हगामा बरपा हुआ। बादशाह डरा ,,और अपनी जान के खतरे से निकल भागा ,और फ़रमाया की इसे महल से बाहर निकाल दो। ख्वासो ने उस लड़की को मेरे घर में पंहुचा दिया। यह चर्चा दुनिया में मशहूर हुआ। जिसने सुना ,हैरान हुआ। और शहज़ादे के मारे जाने के सबब से ,खुद बादशाह और जितने बाशिंदे इस शहर के है ,मेरे दुशमन जानी हुए।
जब मातम दारी से फरागत हुई ,और चहलम हो चूका ,बादशाह ने अरकान दौलत से सलाह पूछी की अब क्या करना चाहिए ? सभी ने कहा : और तो कुछ नहीं हो सकता ,पर ज़ाहिर में दिल की तसल्ली और सब्र के वास्ते ,उस लड़की को उसके बाप समेत मरवा डालिये और घर बार ज़ब्त क्र लीजिये। जब मेरी यह सजा मुक़र्रर की गयी ,कोतवाल को हुक्म हुआ। उसने आकर चारो तरफ से मेरी हवेली को घेर लिया ,और नरसिंगा दरवाज़े पर बजाया ,और चाहा की अंदर घुस आये और बादशाह का हुक्म बजा लाये। गैब से ईंट पत्थर ऐसे बरसने लगे की तमाम फ़ौज ताब न ला सकी ,अपना सर मुंह बचा कर जिधर तिधर भागी। और एक आवाज़ मुहैब बादशाह ने महल में अपने कानो सुनी की क्यू कमबख्ती आयी है ,क्या शैतान लगा है। भला चाहता है तो उस नाज़नीन के अहवाल का का एतराज़ न हो। नहीं तो ,जो कुछ तेरे बेटे ने उससे शादी कर कर देखा तू भी उसकी दुश्मनी देखेगा। अब उनको सताएगा तो मज़ा पायेगा।
बादशाह को मारे दहशत के तप चढ़ी .वही हुक्म किया की इन बदबख़्तो से कोई रहम न हो ,कुछ न कहो न सुनो ,हवेली में पड़ा रहने दो ,ज़ोर ज़ुल्म इनपर न करो। उस दिन से आमिल ,बाद बितास जान कर ,दुआ तावीज़ ,और सियाने जंतर मंत्र करते है। और सब बाशिंदे इस शहर के इसम आज़म और क़ुरआन पढ़ते है। मुद्दत से यह तमाशा हो रहा है ,लेकिन अब तक कुछ इसरार मालूम नहीं होता ,और मुझे भी हरगिज़ खबर नहीं है। मगर इस लड़की से एक बार पूछा की तुमने अपनी आँखों से क्या देखा था ? यह बोली की और तो कुछ मैं नहीं जानती ,लेकिन यह नज़र आया की जिस वक़्त मेरे पति ने क़स्द मुबाशिरत का किया ,छत फट कर ,एक तख़्त मुरसा का निकला . इसपर एक जवान खूबसूरत ,शाहाना लिबास ,पहने हुए बैठा था। और साथ बहुत से आदमी अहतमाम करते हुए उस मकान में आये और शहज़ादे की क़त्ल के प्यासे हुए ,वह शख्स सरदार मेरे नज़दीक आया और बोला : क्यू जानी ! अब हमसे कहा भागोगी ? उनकी सुरते आदमी की सी थी ,लेकिन पाव बकरियों के से नज़र आये। मेरा कलेजा धड़कने लगा और खौफ से गश में आगयी। फिर मुझे सुध नहीं की आखिर क्या हुआ।
तबसे मेरा यह अहवाल है की उस फूटे मकान में हम दोनों जी पड़े रहते है। बादशाह के गुस्से के वजह से अपने क़रीबी सब जुदा हो गए। और मैं गुदायी करने जो निकलता हु ,तो कोई कौड़ी नहीं देता। बल्कि दूकान पर खड़े रहने के रवादार नहीं। इस कमबख्त लड़की के बदन पर लत्ता नहीं की सत्र छिपाये ,और खाने को कुछ नहीं जो पेट भर कर खाये। खुदा से यह चाहता हु की मौत हमारी आये या ज़मीन फटे और ये नाशुदनी समाये। इस जीने से मरना बेहतर है। खुदा ने शायद हमारे ही वास्ते तुझे भेजा है ,जो तूने रहम खा कर एक मुहर दी ,खाना भी मज़ेदार पका कर खाया और बेटी की खातिर कपड़ा भी बनाया। खुदा की दरगाह में शुक्र अदा किया और तुझे दुआ दी। अगर इसपर आसेब जिन या परी का न होता ,तो तेरी खिदमत में लड़की की जगह देता और अपनी सआदत जानता। यह अहवाल इस अजीज़ का है ,तो इसके दर पे मत हो और इस क़स्द से दरगुज़र।
यह सब माजरा
सुन कर मैंने बहुत मिन्नत व ज़ारी की मुझे अपनी फ़रज़न्दी में क़ुबूल कर। जो मेरी क़िस्मत
में बुरा होगा ,सो होगा। वह पीर मर्द हरगिज़
राज़ी न हुआ। शाम जब हुई ,उससे रुखसत होकर सरा में आया। मुबारक ने कहा : लो शहज़ादे ! मुबारक हो खुदा ने असबाब तो दुरुस्त
किया है ,बारे यह मेहनत अकारत न गयी। मैंने
कहा : आज कितनी खुशामद की ,पर वह अँधा बेईमान राज़ी न होता। खुदा जाने देगा भी या नहीं।
पर मेरे दिल की यह हालत थी की रात काटनी मुश्किल
हुई ,की कब सुबह हो ,तो फिर जाकर हाज़िर हु।
कभी यह ख्याल आता था : अगर वह मेहरबान हो और
क़ुबूल करे ,तो मलिक सादिक़ की खातिर ले जायेगा। फिर कहता : भला हाथ तो आये ,मुबारक को
मना कर ऐश करूँगा। फिर जी में यह खतरा आता की अगर मुबारक भी क़ुबूल करे ,तो जिनो के
हाथ से वही नौबत मेरी होगी जो बादशाह ज़ादे
की हुई। और इस शहर का बादशाह कब चाहेगा ,की उसका बेटा मारा जाये और दूसरा ख़ुशी
मनाये।
तमाम रात नींद उचाट हो गयी और इसी मनसूबे के उलझेड़े में कटी ,जब रोज़ रोशन हुआ ,मैं चला। चौक में से अच्छे अच्छे थान पोशाक और गोटा किनारी और मेवे खुश्क खरीद करके ,उस बुज़ुर्ग की खिदमत में हाज़िर हुआ। निहायत खुश होकर बोला की सबको अपनी जान से ज़्यादा कुछ अज़ीज़ नहीं। पर अगर मेरी जान भी तेरे काम आये तो पीछे न हटूंगा। और अपनी बेटी अभी तेरे हवाले करू। लेकिन यही खौफ आता है की इस हरकत से तेरी जान को खतरा न हो ,की यह दाग लानत का मेरे ऊपर ता क़यामत रहे। मैंने कहा : अब इस बस्ती में बेकस हु ,और तुम मेरे दीन दुनिया के बाप हो। मैं इस आरज़ू में मुद्दत से क्या क्या तबाही और परेशानी खींचता हुआ और कैसे कैसे सदमे उठाता हुआ यहाँ तक आया हु। और मतलब का भी सुराग पाया। खुदा ने तृम्हें भी मेहरबान किया ,जो बियाह देने पर रज़ामंद हुए। लेकिन मेरे वास्ते आगा पीछे करते हो। मैंने सब तरह से अपने आपको बर्बाद किया है। माशूक़ के विसाल को मैं ज़िन्दगी समझता हु। अपने मरने जीने की मुझे कुछ परवाह नहीं। बल्कि अगर न उम्मीद होऊंगा तो बिन अजल मर जाऊंगा ,और तुम्हारा क़यामत में दामन गिर होऊंगा।
गरज़ इस हां और न में क़रीब एक महीने के खौफ में गुज़रा। हर रोज़ उस बुज़ुर्ग की खिदमत में दौड़ा जाता और खुशामद बर आमद किया करता। अचानक वह बूढ़ा कहिला हो गया। मैं उसकी बीमारदारी में हाज़िर रहा। हमेशा कारी और हकीम के पास ले जाता। जो नुस्खा लिख देता उसी तरकीब से बना कर पिलाता। और खज़ा अपने हाथो से पका कर खिलाता। एक बार मेहरबान होकर कहने लगा : ए जवान ! तू बड़ा ज़िद्दी है।मैंने हर चंद सारी क़बाहते सुना डाली। और मना करता हु की इस काम से बाज़ आ। जी है तो जहान है। पर ख़्वाह मख्वाह कुंए में गिरना चाहता है .अच्छा आज अपनी लड़की से तेरा मज़कूर करूँगा ,देखो वह क्या कहती है। या अल्लाह ! यह खुश खबरि सुन कर मैं ऐसा फूला समाया। आदाब बजा लाया और कहा की अब आपने मेरे जीने की फ़िक्र की। रुखसत होकर मकान पर आया और तमाम शब् मुबारक से यही ज़िक्र करता रहा। कहा की नींद कहा की भूक .सुबह को नूर के वक़्त फिर जाकर मौजूद हुआ ,सलाम किया। फरमाने लगा की लो , हमने अपनी बेटी तुमको दी ,खुदा मुबारक करे। .तुम दोनों को खुदा की हिफ़्ज़ व अमां में सौपा। जब तलक मेरे दम में दम है मेरी आँखों के सामने रहो। जब मेरी आँख बंद हो जाएगी ,जो तुम्हारे जी में आये करो।
कितने दिन पीछे वह मर्द बुज़ुर्ग जान बहक हो गया। रो पीट कर तकफीन किया। बाद तीजे के ,उस नाज़नीन को मुबारक डोली कर कर कारवां सिरा में ले आया। और मुहसे कहा की यह अमानत मलिक सादिक़ की है। खबरदार खयानत न करना और यह मेहनत मुशक़्क़त बर्बाद न करना। मैंने कहा : ए काका ! मलिक सादिक़ यहाँ कहा है ? दिल नहीं मानता ,मैं क्यू सब्र करू ? जो कुछ हो सो हो जिउ या मरू ,अब तो ऐश कर लू। मुबारक ने डांटा और कहा लड़कपन न करो ,अभी एकदम में कुछ न कुछ हो जाता है। मलिक सादिक़ को दूर जानते हो जो उसका फरमाना नहीं मानते ? उसने चलते वक़्त पहले सब समझा दी। अगर उसके कहने पर रहोगे और सही सलामत उसको वहा तक ले चलोगे ,तो वह भी बादशाह है ,शायद तुम्हारी मेहनत पर तवज्जह करके तुम्हे बख्श दे ,तो क्या अच्छी बात हुई। पीत का पीत रहे और मीत का मीत हाथ लगे।
बारे उसके डराने और समझाने से हैरान होकर चुपके हो रहा। दो सांडनिया खरीद की। और कुजाओ पर सवार हो कर मलिक सादिक़ के मुल्क की राह ली। चलते चलते एक मैदान में आवाज़ गुल शोर की आने लगी। मुबारक ने कहा शुक्र खुदा का ,हमारी मेहनत नेक लगी। यह लश्कर जिनो का आ पंहुचा। बारे ,मुबारक ने उनसे मिलजुल कर पूछा की कहा का इरादा है ? वह बोले की बादशाह ने तुम्हारे इस्तेकबाल के वास्ते तैनात किया है ,अब तुम्हारे फ़रमाबरदार है ,अगर कहो तो एकदम में रु बा रु ले चले। मुबारक ने कहा : देखो ,किस किस महनतो से खुदा ने बादशाह के हुज़ूर में हमें सुर्ख रो किया। अब जल्दी क्या ज़रूर है ?? अगर खुदा न ख्वास्ता कुछ खलल हो जाए ,तो हमारी मेहनत अकारत हो और जहा पनाह की खज़्बी में पड़े। सभी ने कहा की उसके तुम मुख़्तार हो ,जिस तरह जी चाहे चलो। अगरचे सब तरह का आराम था ,पर रात दिन चलने से काम था।
जब नज़दीक जा पहुंचे , मैं मुबारक को सोता देखकर ,उस नाज़नीन के क़दमों पर सर रख कर ,अपने दिल की बेक़रारी और मलिक सादिक़ के सबब लाचारी ,निहायत मिन्नत व ज़ारी से कहने लगा की जिस रोज़ से तुम्हारी तस्वीर देखि है ,ख्वाब व खुरीष और आराम मैंने अपने ऊपर हराम किया है। अब जो खुदा ने यह दिन दिखाया है ,तो महज़ बेगाना हो रहा हु। फरमाने लगी की मेरा भी दिल तुम्हरी तरफ माएल है , ककी तुमने मेरी खातिर क्या क्या हर्ज मर्ज उठाया और किस किस मुश्किलों से ले आये हो। खुदा को यद् करो। और मुझे भूल न जाना। देखो तो पर्दा ग्येब से ज़ाहिर होता है। यह कह कर ऐसी बे इख़्तियार दहाड़ मार कर रोने लगी की हिचकी लग गयी। इधर मेरा यह हाल ,उधर उसका वह अहवाल। उसमे मुबारक की नींद टूट गयी। वह हम दोनों मुशतको को रोना देख कर ,रोने लगा और बोला : खातिर जमा रखो ,एक रोगन मेरे पास है ,उस गुल बदन के बदन में मल दूंगा। उसकी बू से मलिक सादिक़ का जी हट जायेगा। ग़ालिब है की तुम्हे बख्श दे।
मुबारक से यह तदबीर सुन कर दिल को ढारस मिली। उसके गले से लग कर लाड किया और कहा : ए दादा ! तू मेरे बाप की जगह है। तेरे ज़रिये मेरी जान बची। अब भी ऐसा काम कर ,जिसमे मेरी ज़िंदगानी हो ,नहीं तो उस गम में मर जाऊंगा। उसने ढेर सी तसल्ली दी ,जब रोज़ रोशन हुआ ,आवाज़ जिनो की मालूम होने लगी। देखा तो कई ख्वास मलिक सादिक़ के आये है ,और दूसरे पाव भारी हमारे लिए लाये है। मुबारक ने उस नाज़नीन को वह तेल मल दिया ,और पोशाक पहना ,बनाओ करवा कर ,मलिक सादिक़ के पास ले चला। बादशाह ने देख कर मुझे बहुत सरफ़राज़ किया ,और इज़्ज़त और हुरमत से बिठाया ,और फरमाने लगा की तुझसे मैं ऐसा क्या सुलूक करूँगा की किसी ने आजतक किसी से न किया होगा। बादशाहत तो तेरे बाप की मौजूद है। अलावा अब तू मेरे बेटे की जगह हुआ। यह तवज्जह की बाते कर रहा था ,इतने में वह नाज़नीन भी रु बा रु आयी। इस रोगन एक बी एक दिमाग पर अगंदा हुआ ,और हाल बे हाल हो गया ,ताब बॉस की न ला सका ,उठ कर बाहर चला गया। और हम दोनों को बुलाया ,और मुबारक की तरफ मुतवज्जह होकर फ़रमाया की क्यू जी ! खूब शर्त बजा लाये !
मैंने खबरदार कर दिया था की अगर खयानत करोगे ,तो खफ़गी में पड़ोगे। यह बू कैसी है ? अब देखो तुम्हारा हाल क्या करता हु। बहुत जज़बज़ हुआ। मुबारक ने मारे डर के अपना अज़ारबंद खोल कर दिखा दिया की बादशाह सलामत ! जब हुज़ूर के हुक्म से उस काम के हमें कहा गया है ,गुलाम ने पहले ही अपनी अलामत काट कर डिबिया में बंद करके सर्बा मुहर सरकार के खजांची के सुपुर्द क्र दी थी। और मरहम सुलेमानी लगा कर रवाना हुआ था। मुबारक से यह जवाब सुन कर , मेरी तरफ देखा और आंखे निकाल कर घूरा ,और कहने लगा : तो यह तेरा काम है ! और गुस्से में आकर मुंह से बुरा भला बकने लगा। इस वक़्त उसके बत कहाओ से यह मालूम होता है .की शायद जान से मुझे मरवा डालेगा। जब मैंने उसके बुशरे से यह दरयाफ्त किया , अपने अपने जी से हाथ धो कर और जान खो कर ,सरे गिलाफ मुबारक की कमर से खींच कर मलिक सादिक़ की तोंद में मारी। छुरी के लगते ही नेहड़ा और झुनुमा। मैंने हैरान होकर जाना मुक़र्रर मर गया। फिर अपने दिल में ख्याल किया की ज़ख्म तो ऐसा कारी नहीं लगा ,यह क्या सबब हुआ ? मैं खड़ा देखता था की वह ज़मीन पर लोट लात ,गेंद की सूरत बन कर आसमान की तरफ उड़ चला। ऐसा बुलंद हुआ की आखिर नज़रो से गायब हो गया। फिर एक पल के बाद बिजली की तरह कड़कता और गुस्से में कुछ भी बकता हुआ निचे आया ,और मुझे एक लात मारी की मैं चारो खाने चित पड़ा रहा ,और जी डूब गया। खुदा जाने कितनी देर में होश आया। आँखे खोल कर जो देखा तो एक ऐसे जंगल में पड़ा हु की जहा सिवाए केकड़ और छड़ बेरी के पेड़ो के कुछ नज़र नहीं आता। अब उस खड़ी अक़्ल कुछ काम नहीं करती की क्या करू और कहा जाऊं न उमीदी से एक आह भर कर एक तरफ की राह ली। अगर कही कोई आदमी की सूरत नज़र पड़ती तो मलिक सादिक़ का नाम पूछता। वह दीवाना जान कर जवाब देता की हमने उसका नाम भी नहीं सुना।